Great job Dr Parva!!! You just etched your name in the annals of Kashmiri history. I appreciate your great work. I suggest that you should take out a table book of these pictures. If you intend to do that, let me know and I will suggest some publishers. Thanks for everything on this blog. -Samvit Rawal A Pandit writer in exile
हमारे घर -अग्निशेखर हाँ ,लौटने के लिए होता है घर पर हमारे लौटने के रास्ते हैं बंद जहाँ हुआ करते थे हमारे घर बदलने होंगे रास्ते पहुँचने घर के वास्ते
लौटने के लिए होता है घर कोई क्यों करे बार बार हमें बेघर कभी निबिड़ वनों में गुफाओं, चोर -घाटियों , अजाने प्रदेशों में क्यों रहें अनाथ पीढ़ियों की पीढ़ियां
हमारे हैं घर भले ही ढहा दिए गए हों ईंट ईंट जोड़ लेंगे जाकर हमारी है ज़मीन भले ही हथियाई हो उन्होंनें लिखित में हमारी है इतिहास है चर में अचर में व्याप्त हमारी चेतना अनादि है अनंत है हमारी मातृभूमि में हमारा होना आज भी हवा की तहों में हमारे पुरखों की अबूझ बातें हैं खेतों में हल जोतते हुए गाए गीत हैं उत्सवी संगीत हैं संकोच और प्रेम हैं लोक और शास्त्र हैं विद्याधर हैं
वहां हमारे घर हैं जो हमारे लौटने की आस में वहीँ खड़े हैं अड़े हैं मल्बो में गढ़े हैं हमारी स्मृतियों में जड़ें हैं -----
Great job Dr Parva!!! You just etched your name in the annals of Kashmiri history. I appreciate your great work. I suggest that you should take out a table book of these pictures. If you intend to do that, let me know and I will suggest some publishers.
ReplyDeleteThanks for everything on this blog.
-Samvit Rawal
A Pandit writer in exile
Dear Samvit,
ReplyDeleteThanks for your comment here. I would appreciate if you can send me your email ID.
Regards.
Sanjay
Great job done dr Parva.ORZU
ReplyDeleteagnishekharinexile@gmail.com
हमारे घर
ReplyDelete-अग्निशेखर
हाँ ,लौटने के लिए होता है घर
पर हमारे लौटने के रास्ते हैं बंद
जहाँ हुआ करते थे हमारे घर
बदलने होंगे रास्ते
पहुँचने घर के वास्ते
लौटने के लिए होता है घर
कोई क्यों करे बार बार हमें बेघर
कभी निबिड़ वनों में
गुफाओं, चोर -घाटियों ,
अजाने प्रदेशों में
क्यों रहें अनाथ
पीढ़ियों की पीढ़ियां
हमारे हैं घर
भले ही ढहा दिए गए हों
ईंट ईंट जोड़ लेंगे जाकर
हमारी है ज़मीन
भले ही हथियाई हो उन्होंनें
लिखित में हमारी है
इतिहास है
चर में अचर में व्याप्त हमारी चेतना
अनादि है अनंत है
हमारी मातृभूमि में
हमारा होना
आज भी हवा की तहों में
हमारे पुरखों की अबूझ बातें हैं
खेतों में हल जोतते हुए गाए गीत हैं
उत्सवी संगीत हैं
संकोच और प्रेम हैं
लोक और शास्त्र हैं
विद्याधर हैं
वहां हमारे घर हैं
जो हमारे लौटने की आस में
वहीँ खड़े हैं
अड़े हैं
मल्बो में गढ़े हैं
हमारी स्मृतियों में जड़ें हैं
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Hats off Dr.Sanjay..great work done....Hum sada hi logo kay ashiyanay banatay rahay aur apna aashiana kabi bana hi nahi.......
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